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आसमान बादलों से घिरा हुआ था,वह बादल हर जगह अपनी गति से इस प्रकार चल रहे थे मानो उन्हें अभी-अभी दफ्तर से छुट्टी मिली हो।पक्षी आसमान को चीरते हुए अपनी मंजिल की तरफ जा रहे थे। रीमा अपनी छत पर खड़ी आकाश के इस रूप को देख रही थी, उसको आकाश के बदलते रंग को जानना बहुत अच्छा लगता था। वह बादलों के अलग-अलग प्रकारों में कहानियां ढूंढती थी। उन कहानियों को वह अपने ख्वाबों में पिरों कर रात को अपनी मां को सुनाती थी। उसकी मां को उसकी कहानियां सुना बहुत अच्छा लगता था और वह हर लफ्ज़ इत्मीनान से सुनती थी। यह परम्परा बन चुका था। इसी दौरान शाम का वक्त था, आसमान का रंग कुछ पीला कुछ गुलाबी था, हर रोज की तरह पक्षी अभी इधर उधर जा रहे थे, मानो किसी अपने की तलाश में या किसी डर से भाग रहे हो। रीमा वही बैठ गई, उस दुनिया में खो गई। तभी अचानक उस एक आवाज सुनाई देती है। वह इधर-उधर देखती है तो उससे प्रतीत होता है कि वह उसके पड़ोस के घर से आ रही है। उसका घर बाकी घरों की दीवारों के साथ मिलकर बना हुआ था मानो कि ट्रेन के डिब्बों को एक रेखा में जोड़ दिया गया हो। वह अपनी छात टॉप कर अपने बगल वाले घर पर पहुंचती है जहां उसकी बचपन की सहेली सीता रहती है। वहां की छत पर खड़े होकर उसे ऐसा एहसास होता है कि नीचे के फ्लोर से कुछ आवाज आ रही है। रीमा अपना कान छत की जमीन के ऊपर थमा देती है और तब वह सुन पाती है, सीता के रोने की आवाज, अपनी दोस्त को इस कदर रोते सुन रीमा का दिल बैठ जाता है। वह अपने घर वापस चली जाती है। कुछ घंटों बाद वह सीता को फोन करती है और उससे पूछती है कि कोई परेशानी है तो है उससे उस बारे में वार्तालाप करें। सीता रीमा से कुछ नहीं छुपाती इसलिए उसे सब बता देती है कि कैसे उसे आए दिन अपने घर में परछाइयां दिखती है काले साए जो मानो उसका पीछा कर रहे हो। वह बताती है कि सीता ने इस बारे में अपनी मां को कई बार बताया तो उन्होंने उसे मजाक में उड़ा दिया। उन्हें लगा कि सीता कोई कार्टून देख कर कल्पना करनी शुरू कर दी है। रीमा सीता को कहती है कि वह चिंता ना करें और इस घटना के बारे में विचार करने लगती है।
रात को जब अपनी मां के साथ बैठती है तो इस बारे में बताती है कि कैसे सीता को अपने घर में परछाइयां दिखती है। उसकी मां कहती है कि आज की कहानी सच में बहुत विचित्र है रीमा और हंसने लगती हैं। रीमा बार बार होने कहती है कि यह सच है, पर उसकी मां उसे इससे बाकी रातों की कहानियों जैसा समझते हैं। रीमा बड़ी दुविधा में आ जाती है अब जो भी करना होगा उससे खुद ही करना होगा। अगले दिन वो छत की जगह सीता के घर जाती है उसके साथ सारा दिन व्यतीत करती है। वह खेल रहे होते हैं जिसके बीच सीता अचानक चीख पड़ती है। रीमा उसके व्यवहार का कारण पूछती है तो सीता को पाती है, उंगलियों से दरवाजे की तरफ इशारा करते हुए। रीमा खुद बहुत घबरा गई होती है पर अपने दोस्त को हौसला और हिम्मत देने के लिए दरवाजे की तरफ चलती है। उसे ऐसा लगता है उसके शरीर का खून जम गया है। अपने कांपते हुए हाथों से वह दरवाजे को पूरा खुलती है। वहां कोई नहीं होता। वह घर में चारों ओर देखती है, वहां कोई नहीं था। उसे डर लगने लगा था पर याद है ना डर के आगे जीत होती है। वह बहुत बारीकी से देखने लगी। सीता अभी भी अपने कमरे में दुबक कर बैठी हुई थी, अपनी दोस्त को आवाज लगा रही थी वापस आने को। उसे लगा कि वह परछाइयों के साए उसकी दोस्त को खा लेंगे पर रीमा मैं अब हिम्मत आ चुकी थी। अचानक सीता को रीमा की हंसने की आवाज है। सीता हर बड़ी से बाहर गई और उससे पूछती "तुम हंस क्यों रही हो रीमा?"।
रीमा ने उत्तर दिया कि "सीता तुम जिससे डर रही थी वह और कोई नहीं तुम्हारी कठपुतलियां थी जो दीवार पर टंगी हुई थी। हवा चलने पर थोड़ा सा हिलती थी और तुम्हें लगता था कि साए हैं। और यह जो इधर-उधर तुम साईं देख रही हो ना मैं आसपास तुम्हारे घर के पर्दे, यह तुम्हारी खिलौने है, यह सब पता है क्यों हो रहा है?
तुम यह जो रात-रात को जाकर सबसे छुपकर भूतिया फिल्में देखती हो ना इसलिए।"
सीता को लज्जा आने लगी। सीमा ने कहा," हां तुम्हें पता है ऐसे ही था मैंने एक किताब में पढ़ा था कि कई बार मनुष्य उन चीजों से डरता है जिनका असल में कोई अस्तित्व ही नहीं होता। हम अपने डर को खुद पर इतना काबू करने देते हैं कि हम सत्य नहीं देख पाते। आज तुम अपने ही घर के पर्दों से डर गए। इससे हमें पता चलता है कि ऐसा कोई डर नहीं जिस पर काबू किया जा सकता। डर हमारे अंदर होता है और कहीं नहीं।"
दोनों सहेलियां हंसने लगी। रात को जब रीमा ने यह सब अपनी मां को बताया तो उसकी मां ने कहा, " हां बेटी यह सच है डर हमारे भीतर है और कहीं नहीं।"

Chanchal Bagla

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